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आ नाम॑भिर्म॒रुतो॑ वक्षि॒ विश्वा॒ना रू॒पेभि॑र्जातवेदो हुवा॒नः। य॒ज्ञं गिरो॑ जरि॒तुः सु॑ष्टु॒तिं च॒ विश्वे॑ गन्त मरुतो॒ विश्व॑ ऊ॒ती ॥१०॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ā nāmabhir maruto vakṣi viśvān ā rūpebhir jātavedo huvānaḥ | yajñaṁ giro jarituḥ suṣṭutiṁ ca viśve ganta maruto viśva ūtī ||

पद पाठ

आ। नाम॑ऽभिः। म॒रुतः॑। व॒क्षि॒। विश्वा॑न्। आ। रू॒पेभिः॑। जा॒त॒ऽवे॒दः॒। हु॒वा॒नः। य॒ज्ञम्। गि॑रः। ज॒रि॒तुः। सु॒ऽस्तु॒तिम्। च॒। विश्वे॑। ग॒न्त॒। म॒रु॒तः॒। विश्वे॑। ऊ॒ती ॥१०॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:43» मन्त्र:10 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:5 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:10


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (जातवेदः) बुद्धि से युक्त (हुवानः) दान करते हुए आप (नामभिः) संज्ञाओं और (रूपेभिः) रूपों से (विश्वान्) सम्पूर्ण (मरुतः) मनुष्यों को (आ) सब प्रकार (वक्षि) प्राप्त हूजिये (जरितुः) स्तुति करनेवाले की (सुष्टुतिम्) स्तुति करनेवाले की उत्तम प्रशंसा को (गिरः) वाणियों को (यज्ञम्, च) और संगति करने को (विश्वे) सम्पूर्ण (गन्त) प्राप्त होवें तथा (विश्वे) समस्त (मरुतः) मनुष्यों को (ऊती) रक्षण आदि क्रिया से (आ) प्राप्त होवें ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! आप सम्पूर्ण नाम और रूप आदिकों से सम्पूर्ण पदार्थों को सम्पूर्ण मनुष्यों के लिये साक्षात् कराओ, जिससे सब मनुष्य प्रशंसित होकर सब को प्रशंसित विद्यायुक्त सम्पादित करें ॥१०॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे जातवेदो हुवानस्त्वं नामभी रूपेभिर्विश्वान् मरुत आ वक्षि जरितुः सुष्टुतिं गिरो यज्ञञ्च विश्वे गन्त विश्वे मरुत ऊत्याऽऽगन्त ॥१०॥

पदार्थान्वयभाषाः - (आ) समन्तात् (नामभिः) संज्ञाभिः (मरुतः) मनुष्यान् (वक्षि) आवह (विश्वान्) समग्रान् (आ) (रूपेभिः) रूपैः (जातवेदः) प्रजातप्रज्ञः (हुवानः) ददन् (यज्ञम्) सङ्गतिकरणम् (गिरः) वाचः (जरितुः) स्तावकस्य (सुष्टुतिम्) स्तावकस्य उत्तमां प्रशंसाम् (च) (विश्वे) सर्वे (गन्त) गच्छन्तु प्राप्नुवन्तु (मरुतः) मनुष्यान् (विश्वे) सर्वे (ऊती) ऊत्या रक्षणादिक्रियया ॥१०॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! भवान् सर्वैर्नामभी रूपादिभिश्चाऽखिलान् पदार्थान् सर्वान् मनुष्यान् साक्षात्कारयतु येन सर्वे मनुष्याः प्रशंसिता भूत्वा सर्वान् प्रशस्तविद्यान् सम्पादयन्तु ॥१०॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वाना! तू सर्व माणसांना संपूर्ण पदार्थांचे नाव व रूप इत्यादीसह प्रत्यक्ष करव. ज्यामुळे सर्व माणसे प्रशंसित होऊन सर्वांना विद्यायुक्त करतील. ॥ १० ॥